हम कहते और सुनते आए हैं की – “भारत गांवों में बसता है!” “कृषक हमारा सबसे बड़ा मित्र है!”
किंतु अब इन पर गहन चिंतन व मनन का समय आ गया है। जो हम कह रहे हैं और जो हम सुन रहे है, वह हृदय तक पहुंचे और मस्तिष्क उसको माने इसके लिये आवश्यक है इन वाक्यों के सार तत्त्वों को समझना और उन्हें आचरण में लाना।
शिक्षा और तकनीकी के क्षेत्र में हमने जैसे जैसे प्रगति की, हमारी महात्वाकांक्षा में भी स्वाभाविक रूप से बढ़ोतरी होती गई। नए आयाम, नए क्षितिज दृष्टिगोचर होते गए और नए लक्ष्य अधिक लुभावने लगने लगे। किंतु हम भारतवासी जब संख्या में बढ़े तो रोजगार के अनगिनत दिखने वाले अवसर भी हमारे लिए अपर्याप्त ही रह गए, और इसी के साथ प्रारंभ हुआ युवाओं में असंतोष, असमानता और मानसिक उद्वेग का दौर।
समस्या शिक्षा व तकनीक हो ऐसा नहीं था, वरन् समस्या थी शिक्षा के व्यापक मापदंडों को न समझना या लकीर से हट कर कुछ न ग्रहण करने की हमारी मनोवृति। जय जवान – जय किसान का नारा तो सबने लगाया किंतु जवान और किसान के स्थान पर खड़े होने का साहस कम ही कर पाए। यहीं से प्रारंभ हुआ पलायन का दौर और उस पर अभूतपूर्व प्रतिस्पर्धा का दौर।
परीक्षा में अधिक से अधिक नंबर लाने की प्रतिस्पर्धा, कॉलेज एडमिशन की प्रतिस्पर्धा, एक दूसरे से आगे भागने की प्रतिस्पर्धा और इससे भी एक कदम आगे एक-दूसरे को पीछे धकेलने की प्रतिस्पर्धा। इनमें से 90% प्रतिस्पर्धा सरकारी नौकरियों को ध्यान में रखते हुए थी।इस प्रतिस्पर्धा के परिणाम स्वरूप हुआ यह कि इस सब में कृषि केवल ग्रामीण बन कर रह गई और कृषक जो भारत की पहचान था, बहुत पीछे छूट गया।
जब मैंने 14 वर्ष पूर्व शबरी कृषि फार्म की वृक्ष और हरियाली रहे धरती पर पहला पौधा लगाया, तब मेरे मन में एक कृषक की पुत्री और स्वयं कृषक होने के नाते एक ही विचार था और वह था युवा वर्ग के समक्ष कृषि को एक उन्नत और सर्वश्रेष्ठ व्यवसाय के रूप में प्रस्तुत करने का प्रयास करना। हमारा अधिकांश युवा वर्ग आज भी धनोपार्जन के लिए सरकारी नौकरियों पर आश्रित रहने का भ्रम पाले हुए है, किंतु सरकार स्वयं अपने कृषकों पर आश्रित है ।यह वह व्यवसाय है जो अपने आप में परिपूर्ण है। समय ,काल और परिस्थिति जो भी हो, अनाज व फल सब्जियों का उत्पादन हमारी मूलभूत आवश्यकता है ।यह डिमांड और सप्लाई की वह चेन है जो किसी भी परिस्थिति में अपना अस्तित्व बचाए रखती है। संभव है हम फैक्ट्री उत्पादों के बिना रह भी लें, किंतु कृषि उपज के बिना हम एक दिन भी नहीं रह सकते। संभवत आवश्यकता कृषि को एक उन्नत व्यवसाय के रूप में प्रस्तुत करने की है। इस विषय पर गहन चिंतन और मनन की आवश्यकता है, किंतु बदलाव लाने के लिए आदर्श उदाहरण के साथ प्रस्तुति आवश्यक है।
कम जमीन होने पर परंपरागत खेती के स्थान पर फल सब्जी की वैज्ञानिक और जैविक ढंग से की गई खेती अधिक आर्थिक लाभ दे सकती है। पशुपालन, दुग्ध उत्पादन और पशुओं से प्राप्त गोबर से वर्मी कंपोस्ट का उत्पादन कर खेतों में फसल के लिए उसका इस्तेमाल करना ना केवल कृषक को स्वावलंबी बनाता है, बल्कि मानवता के हित में भी है। कहते हैं भगवान भी उनके सहायता करते हैं जो अपनी सहायता आप करते हैं ।किसान को इस दृढ़ विश्वास के साथ आगे बढ़ना होगा, कि उसका व्यवसाय संसार का सर्वश्रेष्ठ व्यवसाय है क्योंकि इसमें मानवता का कल्याण छिपा है। शिक्षा और कृषि दोनों में क्रांतिकारी परिवर्तन लाने की शक्ति छिपी होती है, और साथ ही परोपकार भी।
शबरी कृषि फार्म मेरे द्वारा मेरे किसान भाइयों के समक्ष रखा गया सकारात्मक प्रयास का लघु उदाहरण है ।मुझे प्रसन्नता है कि स्थान स्थान से किसान भाई यहां आते हैं। हम मिलकर संगोष्ठी आयोजित करते हैं और कृषि को एक आधुनिक बहुआयामी व्यवसाय के रूप में प्रस्तुत करने का प्रयत्न करते हैं ।मुझे विश्वास है कि युवा भी धीरे-धीरे इस व्यवसाय से अधिक से अधिक जुड़ेगा। आवश्यकता है तो मात्र उस जागृति की जो परंपरागत रूप से चली आ रही हमारी सोचने की दिशा को नया मोड़ दे और हम उन संभावनाओं पर कार्य करने की सोचें जो हमारे पैरों के तले पहले से ही उपलब्ध है और उसमें सबसे चिरस्थाई संभावना है हमारी धरती, हमारे खेत।हम यदि देश से प्रेम करते हैं तो देश की मिट्टी से प्रेम करना भी हमें सीखना होगा।
“रत्न प्रसविनी है वसुधा अब समझ सका हूं,
इसमें सच्ची समता के दाने बोने हैं,
इसमें जन की क्षमता के दाने बोने हैं,
इसमें मानव ममता के दाने बोने हैं,
जिससे उगल सकें फिर धूल सुनहरी फसलें मानवता की,
जीवन श्रम से हंसे दिशाएं, हम जैसा बोएंगे वैसा ही पाएंगे।”
जसकौर मीना